Sunday 25 October 2015



 वेदप्रणिहितो धर्मो ह्यधर्मस्तद्विपर्यय:
 


ब्रह्मलीन पूज्य गुरुदेव का प्रादुर्भाव नर्मदाके पावन तट तीलकवाडा में कार्तिक शुक्ला चतुर्थी (इ.स. ३०-१०-५४) शनिवारको हुआ । पूर्वजन्मके संस्कार और रक्तके गुण भला अप्रकट कैसे रह सकते है?
बाल्यकालसे ही वे अत्यन्त साहसिक, चपल एवं मेधावी थे ।  वेद वेदांतका अभ्यास उन्होंने स्वयमेव आचार्य  शंकर एवं भगवान वेदव्यासकी कृपा से ही पाया ।  पूज्य गुरुदेवने वैदिकधर्म प्रचार प्रसार संरक्षण हेतु श्रीसनातन वैदिक धर्मानुरागी ट्रस्टकी स्थापना की और ट्रस्टका स्थापना दिवस भी गुरुदेवका
 जन्मदिवस ही है ।
अंतिम साँस तक वैदिक धर्मके सिद्धान्तोको, परंपरा को जीवित रखाl गतवर्ष आप ब्रह्मलीन हुएँ ।  आज भी आपके अनुयायीओं द्वारा इसी परंपराको वहन करने का प्रयास हो रहा है ।
ईश्वरकी अनुकम्पा और आपके आशीर्वादका ही यह फल है ।
आद्य शंकराचार्यके प्रसिद्ध स्तोत्र कनकधारा के विषयको लेकर गत कुछ वर्षोसे व्याख्यान हो रहा है  ।
इस वर्षभी आपकी सुपुत्री डॉ. गार्गी पंडित द्वारा इसी विषय को आगे बढाया जाएगा ।
तो सभी गुरुभक्तोंको सादर आमंत्रण है ।
दि: १५-११-२०१५
समय: ७:०० सायम्
स्थल: शिवोsहम् गोत्री सेवासी रॉड, नर्मदा केनालके सामने, शैषव स्कूलके पास
वडोदरा ।



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