Sunday 8 May 2016





॥ वेदप्रणिहितो धर्मो ह्यधर्मस्तद्विपर्यय: ॥




    आदि शंकराचार्यकी जन्मजयंती महोत्सव पर इस बार भगवान शंकराचार्य रचित भज गोविंदम् के निम्न श्लोको पर चिंतन किया जाएगा। आज वैदिक धर्म जीवित है तो केवल आचार्यश्रीकी कृपा के कारण ही । हम आज अपने आप को हिन्दू कह सकते है क्योकि अवैदिक एवं पाखंड मतो की आँधी के सामने आचार्यश्री ने धर्मकी रक्षा की । भगवान वेदव्यास और आचार्य शंकरके लिए अपन रक्त बहा दे, और प्राणोको न्योछावर कर दे, तो भी कम है । कम से कम उनकी जन्मजयंती पर उनके पूजनसे और उनकी रचनाओका गुणानुवाद करके अपने हिन्दू होनेका प्रमाण दे ।

सुखतः क्रियते रामाभोगः पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः ।
यद्यपि लोके मरणं शरणं तदपि न मुञ्चति पापाचरणम् ॥  

He who yields to lust for pleasure leaves his body a prey to have
Disease . Though death brings an end to everything, man does not
give up the sinful path.


यावत्पवनो निवसति देहे तावत्पृच्छति कुशलं गेहे ।
गतवति वायौ देहापाये भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ॥ 

When one is alive, his family members enquire kindly about his
welfare. But when the soul departs from the body, even his wife
runs away in fear of the corpse.
 
 
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